तेजा दशमी


दशमी मेले—

वीर तेजाजी का मेला जो प्रतिवर्ष भाद्रप्रद शुक्ल की नवमी की रात्रि से एकादशी की रात्रि तक भरता है
मेले में जाट लोक देवता त्यागी, निर्भीक, वचनों के पक्के पर सेवी वीर तेजाजी महाराज के थान यानि मंदिर पर चढ़ाने के लिए कई रंगों में रेशमी पट्टी में गोटा किनारी से तैयार किए गए बड़े-बड़े झण्डे देश के दूर-दूर स्थानों से उनके अनुयायियों द्वारा जो विशेष ग्रामीण व श्रमिक वर्ग होते हैं, के द्वारा जुलूस के रूप में गाते-बजाते ढोल, बैंड, नगाड़ों के साथ लाए जाते हैं ।
कई प्रकार के झूले-चकरियां, बच्चों की रेल गाडि़यां, कई प्रकार के जादू के खेल इत्यादि लगाए जाते हैं । सफाई की, पीने के ठण्डे व मीठे पानी की अनेक प्याऊ व मेलार्थियों के सुस्ताने व ठहरने के लिए अनेक स्थानों पर टेंट लगाए जाते हैं । ग्रामीण-लोग अपनी रंगीन पोशाकों में बडे़-बड़े रेश्मी झण्डे टेªक्अरों में लगाकर बैण्ड बाजों, ढोल नगाड़ों के साथ तेजाजी महाराज की जोत के साथ अलग-अलग टोलियों में तेजाजी के मंदिर पर नाचते गाते जुलूस के रूप में तेजा दशमी के रोज दिन भर आते रहते हैं जो तेजाजी के दरबार में मन्नत मंागते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे मन्नत चढ़ाने आते हैं। प्रत्येक वर्ष भादप्रद शुक्ला नवमी की रात्री के जागरण के साथ यह मेला भादप्रद शुक्ला एकादशी रात्री तक यानि तीन दिन तक लगातार आयोजित किया जाता है।  इस मेले में मध्य राजस्थान की मूल ग्रामीण संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है, जहां असंख्य ग्रामीण आसपास के श्रेत्रों से भव्य मेले का आनंद प्राप्त करते हैं । प्रशासन के द्धारा इस मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से आकर कागज की लुगदी से संुदर-संुदर कलात्मक बनाए नऐ खिलौनों की दुकानें लगाई जाती हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार के घर में काम आने वाले पकाए हुए बर्तनों की दुकानें लगाई जाती हैं। भव्य रोशनी की सुचारू व्यवस्था की जाती है। नारियल की दुकानें, चाट-पकोड़ी की दुकानों के साथ-साथ विसायती के सामान की बहुत सी दुकानें लगाई जाती है।

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