कथा


तेजाजी महाराज।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन तेजाजी महाराज के मंदिरों पर मेला लगता है, जहां सर्पदंश से पीड़ित सहित अन्य जहरीले कीड़ों की ताँती (धागा) छोड़ा जाता है।

कथा
तेजाजी राजा बाक्साजी के पुत्र थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार अपने हाली (साथी) के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उसकी ससुराल गए। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए गए। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक सांप घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डसना चाहता था।

तब तेजा उसे वचन देते हैं कि अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डंस लेना। अपने वचन का पालन करने के लिए डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद लहुलुहान अवस्था में तेजा नाग के पास आते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारूं। तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं।

वीर तेजा की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की ताँती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा। यही कारण है कि भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति वहां जाकर तांती खोलते हैं।

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